सम्बाददाता: पंकज तिवारी
इस थाने को देख कर कांप जाएगी आपकी रूह, यहां किसानों और मजदूरों को दी जाती थी फांसी
*यह वहीं भवन है जिसमें अंग्रेज हुकूमत के दौरान थाना संचालित था। उस दौरान देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले क्रांतिकारियों को यातनाएं दी जाती थी।*
देश की आज़ादी में सिर्फ़ बड़े शहरों और बड़े लोगों का ही खून शामिल नहीं है बल्कि गांवों में रहने वाले किसानों और मज़दूरों का भी लहू शामिल है। जिन्होंने न जाने कितने असहनीय कष्ट सहे हैं। मानिकपुर में बने ब्रिटिशक़ालीन थाना खंडहर में तब्दील भवन आज भी अंग्रेजी हुकूमत की यातना का गवाह है। यह वहीं भवन है जिसमें अंग्रेज हुकूमत के दौरान थाना संचालित था। उस दौरान देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले क्रांतिकारियों को यातनाएं दी जाती थी। कई क्रांतिकारियों ने जब अपना गुनाह नहीं कुबूल किया तो अंग्रेजों द्वारा उनको फांसी पर लटका दिया जाता था। खंडहर हो चुके इस पुराने जर्जर भवन में अब लोग जाने में डरते है। कस्बे के बुर्जुग शारदा प्रसाद गुप्ता ने बताया कि बड़े बुजुर्ग बताते थे कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसी भवन में अंग्रेज थाना चलाते थे। उस दौरान अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ सिर उठाने वाले को इसी थाने में पकड़कर लाया जाता था। उनको तरह-तरह की यातनाएं दी जाती थी। इसी भवन परिसर में अंग्रेजों के समय का पुराना कुआं भी है। जहां पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले गुनाह कुबूल करने के लिए यातनाएं दी जाती थी। इसी भवन में अंग्रेज थाना चलाते थे।
इतिहासकार अनुज हनुमत ने बताया कि कुएं में कई क्रांतिकारियों को लटकाया भी गया था। जिसने अंग्रेजों के खिलाफ फूंके गए बिगुल से अपने कदम पीछे करने से इंकार किया तो उनको फांसी पर भी लटका दिया जाता था। इसी थाना परिसर में करीब आधा दर्जन क्रांतिकारी फांसी पर लटका दिए जाते थे। चित्रकूट के इस थाने में 18वीं शताब्दी के दशक से ही अंग्रेज अपनी हुकूमत जमाने लगे थे और 1857 में जब पहली क्रांति हुई थी। तब यहां आस पास के जो भी किसान इस क्रांति में शामिल हुए थे उनको पकड़कर इस थाने में यातनाएं व फांसी दिया करते थे।
*अंग्रेजों की यातनाओं का गवाह है थाना*
इतिहासकार ने बताया कि 19 सौ के लगभग अंग्रेजों के एक दरोगा से स्थानीय दुबे परिवार के लोगों से इस बात को लेकर बहस हो गई कि उन्होंने दरोगा को महिलाओं को छेड़ते पाया गया। तभी जो वहां के पूर्वज थे उन्होंने थानेदार को इतना मारा पीटा की अंत में उनको वहां से थाने को हटाना पड़ा। इसी बीच अंग्रेजों ने इस पुराने थाने से मानिकपुर स्टेशन के करीब थाना दूसरी जगह सन 1910 में संचालित किया था।