संवाददाता: मनोज कुमार (740 910 3606)
समग्र जैन समाज मे छाई शोक की लहर
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जसवंतनगर जैन मंदिर में रखी गई विनयांजलि सभा
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श्रमण संस्कृति का सूर्य हुआ अस्त
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तीन दिन उपवास बाद हुईं समाधि
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जसवंतनगर जैन समाज ने प्रतिष्ठान बंद रख निकाली पालकी
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ॐ उच्चारण के साथ चेतन अवस्था मे हुई समाधि
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युग दृष्टा ब्रहमांड के देवता संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी महामुनिराज आज दिनांक 17 फरवरी शनिवार तदनुसार माघ शुक्ल अष्टमी पर्वराज के अंतर्गत उत्तम सत्य धर्म के दिन रात्रि में 2:35 बजे ब्रह्म में लीन हो गए खबर सुनते ही सम्पूर्ण भारत वर्ष के साथ जसवंतनगर जैन समाज मे शोक व्याप्त हो गया। नगर जैन गुरु भक्तजन ने अपने प्रतिस्ठान बंद कर णमोकार मंत्र का पाठ करते हुए आचार्य श्री108 विद्यासागरजी महा मुनिराज की पालकी यात्रा शांति चित के साथ नगर भृमण की नगर भृमण के दौरान सैकड़ो की तादाद में आचार्य आदित्य सागर महाराज के साथ जैनगुरु भक्त अनुयायी णमोकार मंत्र का मनन करते हुए चले जैन मंदिर से प्रारम्भ हुआ डोला नगर के छोटे चौराहा लुधपुरा मंदिर पंसारी बाजार लोहामंडी होते हुए जैन बाजार पर संत निवास पर सम्पन्न हुई,संत निवास पर विनयांजलि सभा का आयोजन हुआ जिसमें आचार्य आदित्य सागर महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन धर्म में समाधि मरण करने वाला प्रत्येक जीव मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। एक साधु के जीवन के सम्पूर्ण साधना का फल होता है समाधी
हम सभी को भी संयम मय जीवन जीकर अपना मोक्ष मार्ग प्रसस्त करना चाहिए।
आपको बता दे कि हम सबके प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था एवं प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर अंतिम समय मे ॐ उच्चारण के साथ समाधि को वरण किया । वर्तमान में गुरुदेव चंद्रगिरी तीर्थ डोगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान थे।
,पीएममोदी ,गृहमंत्री अमित शाह,मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जताया शोक,भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में महाराज जी के लिये मौन रखा गया
यूपी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने ट्विटर से गुरुदेव को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कुछ दिनों से गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नही चल रहा था
उपचार न कराते हुए समाधिमरण धारण करते हुए मोक्ष को प्राप्त किया।
उल्लेखनीय है कि कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए विद्याधर ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवार ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया। आचार्य पद की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया। समाज को नई दिशा दी।
*इतनी भाषाओं का है ज्ञान*
आचार्यश्री संस्कृत व प्राकृत भाषा के साथ हिन्दी, मराठी और कन्नड़ भाषा का भी विशेष ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई रचनाएं भी लिखी हैं। इतना ही नहीं पीएचडी व मास्टर डिग्री के कई शोधार्थियों ने उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीग्रह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक पर अध्ययन व मूक माटी पर शोध किया है।