संवाददाता:जेएन द्विवेदी
हमें अपने इतिहास को जानना और गर्व करना चाहिए - प्रो राजाराम यादव, पूर्व कुलगुरु!!*
*👉हमारी शिक्षा की आत्मा को भारतीय बनाने की जरूरत - प्रो शुभा तिवारी, कुलगुरु!!*
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, छतरपुर में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा: शिक्षा, ज्ञान ,विज्ञान और जीवन विज्ञान’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय नेशनल सेमीनार का दूसरे दिन दो अप्रेल मंगलवार को तृतीय तथा चतुर्थ सत्र सहित समापन सत्र संपन्न हुआ। कुलगुरु प्रो शुभा तिवारी के निर्देशन में आयोजित इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के अनेक जानेमाने विद्वानों ने सार्थक व्याख्यान दिए।
मीडिया संयोजक डा एसपी जैन एवं सदस्य श्रीमती पूजा तिवारी ने बताया कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन 2 अप्रेल मंगलवार को तृतीय तकनीकी सत्र में ‘प्राचीन भारत में जनजातीय ज्ञान और उसके प्रयोग’ विषय पर व्याख्यान प्रो मनीष मिश्रा सेम ग्लोबल यूनिवर्सिटी रायसेन ने तथा डॉ.योगेश दुबे दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली ने अपने व्याख्यान दिए।प्रारंभ में अतिथि वक्ताओं का भावभीना स्वागत किया गया। प्रो मनीष मिश्रा, रायसेन ने अपने व्याख्यान में जैविक खाद की विशेषता बताते हुए कहा कि जैविक खाद कम मात्रा में उपयोग होता है आसानी से उपलब्ध है,जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा होता है l
हमें अपने परंपरागत ज्ञान को वैज्ञानिक तरीके से समझ कर पेटेंट कराने की जरूरत है वर्ना विदेशियों द्वारा हमारे ही ज्ञान को हमें बेचा जाएगा l
दूसरे वक्ता डॉ. योगेश दुबे,दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोक परंपरा सिर्फ भौतिक सुखों तक सीमित नहीं रहीं अपितु आध्यात्मिक विकास की ओर भी ध्यान दिया गया l उन्होंने बताया कि समाजवाद के नाम पर किस तरह हमारी लोक परंपराओं पर कुठाराघात किया गया।आज हमें जरूरत है कि हम लोक परंपराओं की जड़ों तक जाये ताकि लोक परंपराओं की बुराईयों को दूर किया जा सके l
इस सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ संतोष कुमार शुक्ल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली ने कहा कि जनजातीय कृषि का मतलब होता है प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर कृषि करना l अंत में इस कार्यक्रम की संयोजक डॉ. ममता बाजपेई ने सभी का आभार माना।कार्यक्रम का संचालन डॉ. दुर्गावती सिंह ने किया।
चतुर्थ तकनीकि सत्र के प्रारंभ में अतिथि वक्ताओं के स्वागत सत्कार के बाद ‘आधुनिकीकरण और विकास की यात्रा में परंपरा संरक्षण में जनजातीय समाज की भूमिका ’ विषय पर वक्तात्रय प्रो एसएन चौधरी,बरकतउल्ला विश्विद्यालय भोपाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यूरोपीय लोगों ने भारतीय परंपरा को पिछड़ेपन की निशानी बताकर अपनी पाश्चात्य सभ्यता को हमारे ऊपर थोप दिया। भौतिक समृद्धि से स्थाई आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती lसत्र की अध्यक्षता प्रो ओमप्रकाश सिंह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली ने की ।इस सत्र में शोधार्थियों ने भारतीय ज्ञानपरम्परा पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किएl
समापन सत्र प्रो राजाराम यादव पूर्व कुलगुरु ,वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के मुख्य आतिथ्य एवं प्रो शुभा तिवारी, कुलगुरु एमसीबीयू,छतरपुर की अध्यक्षता में समारोह पूर्वक आयोजित हुआ।इस अवसर पर कुलसचिव श्री यशवंत सिंह पटेल एवं आयोजन प्रभारी डा ममता बाजपेई मंचासीन रहे।
कुलगुरु प्रो शुभा तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि हमारी भारतीय शिक्षा की आत्मा को भारतीय बनाने की जरूरत है। किसी भी विषय का ज्ञान भारतीय परम्परा से शुरू होना चाहिए।समापन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. राजाराम यादव ने अपने उद्बोधन में कहा कि सारी दुनिया को ज्ञान विज्ञान हमने दिया है।आज जरूरत अपने इतिहास को जानने की और उस पर गर्व करने की है।कोई भी अक्षर ऐसा नहीं है जिसका मंत्र न बन सके और कोई भी वनस्पति ऐसी नहीं है, जिसकी ओषिधि न बन सके।छात्रों को अपना गौरव बोध होना चाहिए।
समापन सत्र में संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए डॉ. अपर्णा प्रजापति ने दोनों दिन के व्याख्यानों और आयोजन का संक्षिप्त विवरण बखूबी प्रस्तुत किया lअंत में डॉ. दुर्गावती सिंह ने सभी का आभार प्रकट किया l
दोनों सत्रों संचालन डॉ. निकिता यादव ने किया। राष्ट्रगान के साथ दो दिवसीय सफल राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ।