संवाददाता:मुशाहिद रजा
हर हैसियतमंद इंसान को जकात देना जकात देना वाजिब हे: जमा मस्जिद पैसे इमाम
सहसवाा - भवानीपुर खलली/ मुकद्दस रमजान का आज अलविदा यानी आखिरी जुमा हो चुका है। रमजान का आखरी जुमा रमजान के विदा होने का पैगाम है।रोजा और तरावीह की बरकतें, सहरी और इफ्तार की फजीलतें खत्म हो रही हैं। इबादत के लिए जो लम्हें बचे हैं उनकी कद्र करें।
इमाम साहब ने मुसलमानों को खिताब करते हुए कहा जकात इस्लाम के पांच रुकुन में से एक है। हर हैसियतमंद इंसान को जकात देना चाहिए। जकात अदा करने के लिए रमजान बेहतर महीना है। रमजान में जकात देने का सवाब ज्यादा है। क्योंकि रमजान तमाम महीनों का सरदार है। इस महीने मे की गई इबादत का सवाब 70 गुना तक बढ़ जाता है। जो साहिबे निसाब होकर जकात से जी चुराए वह अल्लाह की नाराजगी हासिल करता है।
पैसे इमाम ने कहा कि कुरान में अल्लाह ने 32 जगहों पर जकात का जिक्र किया है। आज मुसलमानों में गरीबी इस तरफ इशारा कर रही है के जकात की अदायगी ठीक तरह से नहीं हो रही। सभी लोग जकात अदा करें तो इस के जरिए मुसलमानों की गरीबी दूर की जा सकती है।
और कहा कि हर बालिग मुसलमान मर्द - औरत जो साहबे निसाब है उसे जकात अदा करना चाहिए। जकात अपने गरीब रिश्तेदार गरीब पड़ोसी, गरीब दोस्त, गरीब और मजदूर, मुसाफिर और बेसहारा मिस्कीन या फकीर यतीम और मदरसों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को दी जा सकती है। हर मुसलमान को अपनी तरफ से और अपने बच्चों की तरफ से 2 किलो 45 ग्राम सदकाय फितर ईद की नमाज से पहले पहले अदा करै
उन्होंने कहा कि अपने मां-बाप, बीबी, बच्चों, दादा - दादी, नाना - नानी, सैयदजादों और हाशमियों को जकात नहीं दी जा सकती। और कहा कि मुसलमानों को आज इल्म हासिल करने की सख्त जरूरत है। ताकि हमारे बच्चें दुनियाबी इल्म के साथ दीनी इल्म भी हासिल कर सकें
नमाज के बाद सभी लौगौने अपने मुल्क के अमन और शान्ती के लिए दोआ की गई