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इटावा/सैफई: सियासत व अखाड़े के पहलवान मुलायम सिंह यादव।

 संवाददाता :एम.एस वर्मा(6397329270) ब्यूरो चीफ इटावा,सोशल मीडिया प्रभारी उत्तर प्रदेश

                 मनोज कुमार जसवंतनगर 


साल 1962…मैनपुरी के जसवंतनगर में दंगल हो रहा था। धुरंधर पहलवानों के बीच इसमें मुलायम सिंह यादव भी थे। तब उनकी उम्र महज 23 साल थी। मुलायम अपने दांव-पेंच से पहलवानों को चित कर रहे थे। मंच पर वहां के विधायक और सोशलिस्ट पार्टी के कद्दावर नेता नत्थू सिंह भी मौजूद थे।

मुलायम के दांव-पेंच देखकर नत्थू सिंह बेहद प्रभावित हो गए। उन्हें लगा कि सियासी दांव-पेंच के लिए भी मुलायम फिट हैं। यह दंगल मुलायम की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बना। अपने राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह की शरण में ठीक 5 साल बाद 1967 में मुलायम ने जसवंतनगर सीट से पहला चुनाव लड़ा और जीता।

मुलायम ने आखिरी सांस तक न सिर्फ राजनीति की, बल्कि वह यूपी की सियासत के केंद्र बिंदु रहे हैं। अब मुलायम की सपा भाजपा के सामने बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर खड़ी है। मुलायम की जिंदगी में संघर्ष, सफलता, राजनीति, मोहब्बत और एक्शन सब कुछ है। 

मुलायम सिंह यादव की जिंदगी के राजनीतिक पन्नों से गुजरते हैं...

सैफई में जन्म, यहीं से राजनीति

मुलायम का जन्म 22 नवंबर 1939 में सुघर सिंह और मां मारूति देवी के घर पर हुआ। 5 भाइयों में मुलायम सिंह तीसरे नंबर पर थे। नत्थू सिंह के संपर्क में आने के बाद मुलायम राजनीति में सक्रिय हो गए। तेवर पहले से ही सख्त थे। 1963 में इटावा के तब के एसपी बीपी सिंघल ने नत्थू सिंह को अपराधी घोषित कर दिया। उनके घर पर छापेमारी की।

पुलिस के इस एक्शन के खिलाफ राज्यसभा सांसद चंद्रशेखर आ गए। उन्होंने आंदोलन का ऐलान कर दिया। स्थानीय स्तर पर इस आंदोलन की कमान मुलायम सिंह को सौंपी गई। मुलायम ने यह आंदोलन बहुत बड़े स्तर पर किया। इससे मुलायम प्रदेश के बड़े नेताओं की नजर में आ गए।

जसंवतनगर से 9 बार विधायक चुने गए

नत्थू सिंह उस वक्त जसवंतनगर मुलायम की राजनीतिक ताकत से परिचित हो गए। उन्होंने 1967 चुनाव में मुलायम सिंह के नाम की सिफारिश डॉ. राममनोहर लोहिया से कर दी। मुलायम के लिए वह अपनी सीट छोड़ने के लिए तैयार हो गए। मुलायम इस सीट पर एक, दो बार नहीं बल्कि 9 बार विधायक बने। बाद में अपने छोटे भाई शिवपाल के लिए उन्होंने यह विधानसभा सीट छोड़ दी। अब शिवपाल यहां से विधायक हैं।


लोहिया के निधन के बाद चौधरी चरण सिंह की पार्टी जॉइन की

1967 का चुनाव जीतकर मुलायम सिंह विधायक बन चुके थे। चुनाव के कुछ दिन बाद ही 12 अक्टूबर 1967 को डॉ. राम मनोहर लोहिया की मौत हो गई। इसके बाद मुलायम ने चौधरी चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) जॉइन कर ली। 1974 में मुलायम बीकेडी के टिकट पर चुनाव लड़े। बाद में बीकेडी का सोशलिस्ट पार्टी में विलय हो गया। नई पार्टी बनी भारतीय लोक दल। मुलायम सिंह सत्ता में रहने के माहिर थे। अपने 55 साल के राजनीतिक करियर में वह 8 पार्टियों में रहे हैं।


मुलायम परिवार...देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार

मुलायम परिवार देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार कहा जाता है। मुलायम सिंह के 4 भाई थे। इनमें मुलायम और शिवपाल यादव ने ही पढ़ाई की। दोनों बाद में राजनीति में सक्रिय हो गए। लेकिन उनके दूसरे छोटे भाई राजपाल और अभयराम यादव सैफई गांव में खेती बाड़ी से जुड़े काम ही देखते रहे।

शिवपाल यादव जहां सपा सरकार में मंत्री बने तो बेटा अखिलेश यूपी के सीएम बने। चचेरे भाई रामगोपाल यादव को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर राज्यसभा भेजा। वहीं, भतीजे धर्मेंद्र यादव और पोते तेजप्रताप यादव ने भी सांसदी जीती।

यही नहीं, बहू डिंपल भी सांसद हैं। शिवपाल की पत्नी सरला यादव अभी इफ्को की सदस्य हैं। वह इटावा की डिस्ट्रिक्ट कॉपरेटिव अध्यक्ष रहीं हैं। भाई राजपाल यादव की पत्नी प्रेमलता, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं हैं। भतीजे रणवीर सिंह की पत्नी मृदुला यादव, सैफई ब्लॉक प्रमुख रही हैं।




मुलायम पहली बार अजीत को पटकनी देकर सीएम कुर्सी पर बैठे

1987 में चौधरी चरण सिंह की मौत के बाद अजीत सिंह से मुलायम की ठन गई। अजीत ने पहले ही उन्हें लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटाया था। इसका बदला मुलायम को लेना था। 1989 में मुलायम ने इसका बदला अजीत सिंह काे सीएम रेस से बाहर कर खुद सीएम बनकर लिया।


अयोध्या से देशभर में चर्चा में आए मुलायम

1990 में राम मंदिर आंदोलन की लहर चल रही थी। अक्टूबर-1990 में देश भर से कारसेवक कारसेवा करने के लिए अयोध्या पहुंच गए। तब सीएम रहे मुलायम सिंह ने बयान दिया “बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है”। इसके बावजूद कारसेवक नहीं रुके।

30 अक्टूबर 1990 को कारसेवक बाबरी मस्जिद के पास पहुंच गए। अचानक से सुरक्षाकर्मियों ने कारसेवकों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी। पहली बार कारसेवकों पर गोली चली। इसमें 5 लोगों की मौत हो गई। 2 नवंबर 1990 को फिर कारसेवक पहुंचे। तब पुलिस ने फिर गोलियां चलाई। सरकारी आंकड़ों में 15 लोगों की मौत हुई।

कांशीराम की सलाह पर मुलायम ने बनाई सपा

1991 में लोकसभा चुनाव जीत कर कांशीराम इटावा से सांसद बने। यहीं से कांशीराम और मुलायम सिंह की दोस्ती हुई। कांशीराम ने मुलायम को अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी। इसके बाद मुलायम ने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया।

मुलायम ने तब एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण साधा। 1993 में विधानसभा चुनाव हुए तो मुलायम और कांशीराम ने गठबंधन कर लिया। मुलायम-कांशीराम की जुगलबंदी ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इस चुनाव में नारा दिया गया था-मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम। बहरहाल, बसपा और सपा ने गठबंधन में सरकार बना ली। मुलायम सिंह यादव दूसरी बार सीएम की कुर्सी पर बैठ गए।


जब मुलायम प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए, फिर बने रक्षामंत्री 

1996 में लोकसभा चुनाव में 13 दिन के लिए अटल की सरकार बनी थी। तब एक मौका ऐसा आया कि मुलायम प्रधानमंत्री की रेस में आ गए थे। अटल सरकार के इस्तीफे के बाद यह हुआ कि आखिर कौन सरकार बनाएगा। कांग्रेस के पास 141 सीटें थीं, लेकिन वह गठबंधन सरकार बनाना नहीं चाहती थी।

सरकार बनाने के लिए यूनाइटेड फ्रंट बना। उस समय सपा को 16 सीटें मिली थीं। तब पहले वीपी सिंह या ज्योति बसु को पीएम बनाने की बात हुई। लेकिन उनके नाम पर सहमति नहीं हुई। लालू यादव चारा घोटाले में फंस चुके थे। इसके बाद मुलायम का नाम सामने आया। लेकिन लालू यादव ने मुलायम के नाम का विरोध कर दिया।


इसके बाद सबकी सहमति से एचडी देवगौड़ा का नाम सामने आया। इस सरकार में मुलायम सिंह यादव रक्षामंत्री बने थे। हालांकि, 1998 में सरकार फिर गिर गई। मुलायम सिंह ने यूपी में लगातार सक्रिय रहे।

25 अगस्त 2003 को बसपा और भाजपा का गठबंधन टूट गया। गठबंधन टूटते ही मुलायम सक्रिय हो गए। सियासी दांव-पेंच से मुलायम ने बागी, निर्दलियों और छोटे दलों को साथ निभाया। इसके बाद मुलायम तीसरी बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने।


चौथी बार में अखिलेश को सौंपी यूपी की कमान

अखिलेश यादव ने पूरे यूपी में तकरीबन 10 हजार किमी साइकिल यात्रा की। जिससे प्रदेश के युवाओं में उनके प्रति क्रेज खूब रहा। यही नहीं सपा के व्यवहार के विपरीत उन्होंने अपराधियों को टिकट न देने का बयान भी दे डाला। जिससे समाजवादी पार्टी एक बार फिर बहुमत के साथ सत्ता में लौटी।


2019 लोकसभा चुनाव में शिवपाल ने दी सपा को चुनौती

अखिलेश यादव से दूरी के बाद शिवपाल ने 2019 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के झंडे तले अपने 47 कैंडिडेट लोकसभा चुनाव में उतार दिए। खुद फिरोजाबाद से चुनाव लड़े और रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के वोट काट दिए। जिससे चाचा-भतीजे की लड़ाई में भाजपा का कैंडिडेट जीत गया।


इस चुनाव में सपा ने बसपा से हाथ मिलाया था, बसपा तो 10 सीट जीत गई, लेकिन सपा 5 सीट पर ही सिमट गई।

बहरहाल, 2022 चुनावों से पहले अखिलेश यादव को लगा कि चाचा शिवपाल का साथ भाजपा को हराने के लिए जरूरी है। ऐसे में वह 6 साल बाद लखनऊ में चाचा शिवपाल के घर दिसंबर 2021 में पहुंचे। हालांकि, इसके बावजूद चाचा-भतीजा मिलकर भी 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाए। 10 अक्टूबर 2022 को मुलायम सिंह एकजुट परिवार को देखते हुए इस दुनिया से विदा हो गए। मेदांता गुरुग्राम में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।



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