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मनोज कुमार जसवंतनगर, 7409103606
*परम श्रुत षट्खण्डागम व जिनवाणी की हुई पूजन*
*पर्व से जुडी झांकियो को किया प्रदर्शित*
जसवंतनगर- जैन धर्म के प्रमुख महापर्व में से एक श्रुत पंचमी महापर्व को नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में हर्षोउल्लास से मनाया गया। श्रुतपंचमी ज्ञान की आराधना का पर्व है दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार प्रतिवर्ष जेठ शुक्ल पंचमी को श्रुत पंचमी मनाया जाता है
इस दिन मां जिनवाणी की आराधना और प्रभावना की जाती है। जिन मंदिर में विराजित शास्त्रों का रख रखाव करते हुए विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। धर्म शास्त्रों को जीणोद्धार करके उन्हें पुनः विराजित किया जाता है।
जैन मंदिर में चल रहे जैन संस्कार शिक्षण शिविर के अंतर्गत बाल ब्र. राहुल जैन ने श्रुत पंचमी महापर्व पर प्रकाश डालते हुए कहा आचार्य धरसेन जब बहुत वृद्ध हो गये थे और उन्होंने अपना जीवन अल्प जाना, तब श्रुत की रक्षार्थ मुनिसंघ के पास एक पत्र भेजा। तब मुनि संघ ने पत्र पढ कर दो मुनियों को गिरनार भेज दिया।
वे मुनि समस्त कलाओं मे पारंगत थे। आचार्य भूतवलि और आचार्य पुष्पदन्त ने धरसेनाचार्य की सैद्धान्तिक देशना को श्रुतज्ञान द्वारा स्मरण कर उसे षट्खण्डागम नामक महान जैन परमागम के रूप में रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन प्रस्तुत किया। सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परम्परा के रूप में प्रारंभ किया गया। यह दिन शास्त्र श्रुतपंचमी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
रात्रि में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें मंगलाचरण, डिजिटल प्रश्न मंच, पहेली बुझाओ के साथ-साथ पर्व से जुड़ी ज्ञानवर्धक झांकियां को भी प्रदर्शित किया गया।
कविवर पंडित दौलत राम, कोंडेश ग्वाला से कुंदकुंद, श्रीमद् रायचंद जी, आचार्य मानतुंग, आत्मानुभूति से ही आत्म कल्याण आदि झांकियों को भी प्रदर्शित किया गया। जिसमें सैकड़ो की संख्या ने लोगों ने पहुंचकर झांकियों को सराहा एवं उनसे सीख लेने की कोशिश की। कार्यक्रम में सकल जैन समाज मौजूद रहा।