संवाददाता: एम.एस वर्मा,इटावा ब्यूरो चीफ, सोशल मीडिया प्रभारी
लोकसभा चुनाव के कैंपेन में लगातार बाबासाहेब की तस्वीरों को लहराने वाले,संविधान हाथ में लेकर के टहलने वाले,पीडीए यानी कि पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक का नारा देने वाले इसके अलावा पूरे चुनाव में आरक्षण खतरे में है। और पिछडों दलितों के अधिकार छीने जा रहे हैं।इन तमाम चीजों का राग अलापने वाले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में 37 सीटें जीतने के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहली बार पदाधिकारी के नाम की घोषणा की. और उनमें ही उनका पीडीए धुआं धुआं हो गया. नीचे के तीन पदों पर P पी औरA ए का ध्यान जरूर रखा गया। लेकिन चार पदों में D डी यानी कि दलित पूरे तरीके से गायब हो गया.दलित गायब होने से भी बड़ी बात थी। जो पहले सबसे महत्वपूर्ण पद पर यानी कि स्वयं अखिलेश यादव जी पद पर थे. इसका मतलब पार्टी में उस समय उससे बड़ा कोई और पद हो नहीं सकता था। क्योंकि अगर अखिलेश यादव चुनाव जीतेंगे तो मुख्यमंत्री बनेंगे,चुनाव हारेंगे तो नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठेंगे। मगर विधानसभा छोड़कर के लोकसभा पहुंचे हैं तो सबकी निगाह टिकी थी। कि बदले हुए अखिलेश यादव क्या वास्तव में किसी पिछड़े या दलित समाज के व्यक्ति को नेता प्रतिपक्ष का पद देंगे। लेकिन अखिलेश यादव जी ने साबित कर दिया कि वह ब्राह्मण बाद की चंगुल से निकल ही नहीं सक।
विधानसभा के दो बार अध्यक्ष भी रहे हैं मंत्री भी रहे हैं सबसे महत्वपूर्ण बात है कि विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए सचिवालय में जो भर्तियां करवाई थी उसमें ठोंक करके ब्राह्मणवाद नजर आ रहा था।
इसके अलावा सिद्धार्थनगर में जो सिद्धार्थ विश्वविद्यालय है,उनमें लाइन से ब्राह्मण असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति करवा दी थी। अब वही ब्राह्मण शिरोमणि माता प्रसाद पांडे को अखिलेश यादव ने तमाम विचारे दलित विधायकों के सर पर बैठा दिया है TTN न्यूज़ चैनल केवल विरोध करने के लिए विरोध नहीं करता है। बल्कि आंकड़े बताते हैं कि अखिलेश यादव का यह निर्णय न सिर्फ पूरी तरीके से पीडीए विरोधी है.बल्कि जिस जनता ने उनको विधानसभा और लोकसभा में वोट दिया है उनके साथ विश्वासघात और धोखा है।कैसे विधानसभा में अखिलेश यादव यानी की समाजवादी पार्टी के 111 विधायक जीत करके आए जिसमें ब्राह्मण विधायक महज जीत करके आए पांच, ,उनमें भी राज्यसभा चुनाव में तीन ब्राह्मण विधायक क्रॉस वोटिंग कर चुके हैं।
मनोज पांडे,राकेश पांडे,विनोद चतुर्वेदी यानी कि मौजूदा समय में समाजवादी पार्टी के पास महज दो ब्राह्मण विधायक हैं.और लोकसभा चुनाव में महज एक सांसद सनातन पांडे जीते हैं.ऐसे में 111 में से दो विधायकों वाले और एक सांसद वाले ब्राह्मण समाज को सदन का विपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण पद नेता प्रतिपक्ष थमा दिया गया है। जबकि अगर आंकड़ों के हिसाब से देखें तो इस पद पर पहला अधिकार बनता था।
किसी मुस्लिम विधायक का क्योंकि 111 में से 32 विधायक मुस्लिम बने हैं। जबकि चार सांसद इस बार मुस्लिम चुन करके आए हैं।दूसरे नंबर पर अधिकार बनता था यादव समाज का जिसमें 111 में 24 विधायक चुनकर आये थे।और इस बार पांच सांसद बने हैं हालांकि अखिलेश जी ने अपने परिवार के अलावा किसी यादव को इस लायक नहीं समझा कि उसको संसद में पहुंचाया जाए,पांचो यादव उनके परिवार के ही लोकसभा संसद में चुनकर के भिजवा दिए हैं।तीसरे नंबर पर अधिकार बनता था कुर्मी समाज का,जिसके 13 विधायक बने हैं. और अब 7 सांसद चुनकर के आए हैं। चौथे नंबर पर अधिकार बनता है,पासी समाज का,जिसमें आठ विधायक चुनकर के आए थे और अब लोकसभा में पांच सांसद चुनकर के आए हैं। पांचवें नंबर पर अधिकार बनता था जाटव समाज का,जिसके 10 विधायक चुनकर के आए थे और अब लोकसभा में दो सांसद चुनकर के आए हैं.इन सबको धता बताते हुए दो विधायक वाले एक सांसद वाले ब्राह्मण समाज को नेता प्रतिपक्ष का पद थमा दिया है। जिसको कैबिनेट मंत्री का दर्जा,और तमाम सुविधा प्राप्त होती हैं। वही पीडीए का झुंझना देने के लिए महबूब अली जी को अधिष्ठाता मण्डल विधानसभा बनाया है। कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक विधानसभा बनाया है, और कुर्मी समाज से आने वाले डॉक्टर आर के वर्मा जो तीसरी बार विधायक हैं। उनको विधानसभा का उप सचेतक बनाया है. इन पदों पर नियुक्तियो को सम्बाद दाता, एम.एस.वर्मा बिल्कुल ठीक मानता है। लेकिन पीडीए मैं डी कहां गायब हो गया.और ब्राह्मण कहां से आ गया TTN न्यूज़ चैनल यह कतई नहीं चाहता कि किसी पार्टी में किसी समाज की आप पूरी तरीके से उपेक्षा कर दें.मगर आंकड़े विधानसभा और लोकसभा चुनाव के क्या कहते हैं।कि समाज से आने वाले किसी व्यक्ति को इतनी महत्वपूर्ण पद पर बैठा ले ,मतलब वोट कहीं से लेंगे किसी और मुद्दों के आधार पर लेंगे,और अपनी मर्जी,और रंगबाजी,के हिसाब से किसी भी समाज के व्यक्ति को पद दें देंगे.यह ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है।
लोकसभा चुनाव से पहले आरक्षण का खतरा दिखाकर, संविधान दिखाकर,बाबा साहेब की तस्वीर दिखाकर, जातिवार जनगणना,जैसे तमाम सारे मुद्दों को उठाकर के आप उत्तर प्रदेश में जीतने में सफल हो गए. लेकिन याद रखिए कि अगर संसद और विधानसभा में यह लड़ाई पुरजोर तरीके से दिखाई नहीं दी, ये मुद्दे महज पॉलीटिकल स्टंट बनकर के रह गए, तो कांठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती.