जब चोर को पता चला कि मशहूर लेखक का है घर, तो लौटाया लूटा हुआ सामान, साथ में छोड़ा इमोशनल नोट
महाराष्ट्र (Maharashtra) में घर का सामान लूटने वाले चोर से जुड़ा एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. मुंबई पुलिस ने मंगलवार को बताया कि एक चोर को यह एहसास होने पर पछतावा हुआ कि जिस घर से उसने कीमती सामान चुराया था, वह एक मशहूर मराठी लेखक का है. इसके बाद उसने चोरी किया हुआ कीमती सामान लौटा दिया, जो वह लेकर भागा था.
पुलिस ने बताया कि रायगढ़ जिले के नेरल में स्थित जिस घर से चोर ने एलईडी टीवी सहित कीमती सामान चुराए, वह नारायण सुर्वे का है. लेखक सुर्वे, का निधन 16 अगस्त 2010 को 84 वर्ष की उम्र में हो गया था. मुंबई में जन्मे लेखक मशहूर मराठी कवि और सामाजिक कार्यकर्ता थे, उनकी कविताओं में शहरी मजदूर वर्ग के संघर्षों को साफ रूप देखने को नजर आता है.
सुर्वे की बेटी सुजाता और उनके पति गणेश घारे अब इस घर में रहते हैं. वे अपने बेटे के पास विरार गए थे और उनका घर 10 दिनों से बंद था. चोर ने मौके का फायदा उठाते हुए घर से जरूरी सामान लूट लिया.
घर में लेखक की यादें देख इमोशनल हुआ ‘पढ़ा-लिखा’ चोर
लूट के इरादे से चोर घर में घुसा और एलईडी टीवी सहित कुछ सामान चुरा ले गया. अगले दिन जब वह कुछ और सामान लेने लौटा तो उसने एक कमरे में सुर्वे की तस्वीर और यादगार चीजें देखीं.
जानकारी के मुताबिक चोर काफी पढ़ा-लिखा था और जब लेखक के बारे में पता चला तो वह पछतावे से भर गया और उसने जो भी सामान उठाया था, उसे वापस कर दिया. उसने दीवार पर एक छोटा सा नोट चिपका दिया, जिसमें उसने इतने महान साहित्यकार के घर से चोरी करने के लिए मालिक से माफी मांगी.
नरेला पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर शिवाजी धवले ने बताया कि सुजाता और उनके पति जब घर वापस लौटे, तो चोर के द्वारा छोड़ा गया पत्र मिला. इसके अलावा उन्होंने बताया कि टीवी और अन्य सामानों पर पाए गए फिंगर प्रिंट्स के आधार पर पुलिस आगे की जांच कर रही है.
मुश्किल में गुजरा नारायण सुर्वे का बचपन
गौरतलब है कि मशहूर मराठी कवि बनने से पहले नारायण सुर्वे ने काफी मुश्किलें झेलीं. उनकी जिंदगी का एक लंबा हिस्सा मुंबई की अनाथ के रूप में मुंबई की गलियों में गुजरा. उसके बाद उन्होंने घरेलू सहायक, होटल में डिशवॉशर, दाई, पालतू कुत्ते की देखभाल करने वाला, दूध पहुंचाने वाला लड़का, एक कुली और एक चक्की मजदूर के रूप में काम करते हुए अपनी जिंदगी गुजारी. नारायण सुर्वे ने अपनी कविता के जरिए मजदूरी का महिमामंडन किया और मराठी साहित्य में स्थापित साहित्यिक मानदंडों को चुनौती दी.