संवाददाता: एम.एस वर्मा, इटावा ब्यूरो चीफ, सोशल मीडिया प्रभारी, 6397329270
ऐसे ही कोई कल्याण सिंह नहीं बन जाता बहुत कुछ सहन और बहुत कुछ करना होता है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कल्याण सिंह की तृतीय पुण्यतिथि पर आयोजित ‘हिंदू गौरव दिवस’ के दूसरे संस्करण के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शामिल होकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर योगी आदित्यनाथ ने कल्याण सिंह के जीवन के संघर्षों और चुनौतियों को याद करते हुए उनकी यात्रा को ‘शिखर से शून्य’ तक की यात्रा करार दिया। योगी ने कहा कि कल्याण सिंह बनने के लिए संघर्ष, त्याग, और बलिदान के मार्ग को चुनना पड़ता है।
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1935 को अलीगढ़ जिले के अतरौली तहसील के मढ़ौली गाँव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए थे।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य भी किया, लेकिन राजनीति में उनकी दिलचस्पी ने उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ाया। 1967 में उन्होंने जनसंघ के टिकट पर अतरौली सीट से चुनाव जीता और 1980 तक लगातार इस सीट से जीतते रहे।
जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो जाने के बाद 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी और कल्याण सिंह को राज्य का स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया।
हालांकि, 1980 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) के गठन के समय उन्हें पार्टी का प्रदेश महामंत्री बनाया गया।
कल्याण सिंह ने 1991 में यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया।
उनका कार्यकाल बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण विशेष रूप से याद किया जाता है, लेकिन वे एक सख्त, ईमानदार और कुशल प्रशासक के रूप में भी जाने गए।
हालांकि, 1997 में जब वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तो उनकी सरकार पहले जैसी प्रभावशाली नहीं रही। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मतभेद बढ़ते गए, जिसके चलते उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और अपनी नई पार्टी ‘राष्ट्रीय क्रांति पार्टी’ का गठन किया।
उनके इस निर्णय ने भाजपा को काफी नुकसान पहुंचाया। बाद में कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी के साथ नजदीकियां बढ़ाईं, लेकिन इस गठबंधन ने उनकी राजनीतिक स्थिति को और कमजोर कर दिया।
2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयासों से कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी हुई, लेकिन पार्टी में उनकी पहले जैसी स्थिति नहीं रही। 2009 में वे फिर से भाजपा से नाराज होकर पार्टी छोड़ गए, लेकिन 2013 में वे एक बार फिर भाजपा में शामिल हुए।
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी सफलता मिली और इसके बाद कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्होंने एक बार फिर भाजपा की सदस्यता ली, लेकिन पार्टी ने उन्हें कोई प्रमुख जिम्मेदारी नहीं दी।
कल्याण सिंह के राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उनकी हिंदूवादी छवि और प्रशासनिक कर्तव्यों के प्रति निष्ठा ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
उनके परिवार के सदस्यों, जैसे उनके बेटे राजवीर सिंह और पोते संदीप सिंह, को भाजपा ने सम्मानजनक स्थान दिया, लेकिन कल्याण सिंह को उनकी पहले जैसी पहचान और सम्मान नहीं मिला।