संवाददाता: नेशनल हैंड अधिवक्ता राजेश कुमार
नई दिल्ली वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को ट्रायल कोर्ट, जिला न्यायालय और सत्र न्यायालयों को बिना किसी भय या पक्षपात के न्याय देने के लिए सशक्त बनाने के महत्व पर जोर दिया.
जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए सिब्बल ने जोर देकर कहा कि इन न्यायालयों को अधीनस्थ नहीं, बल्कि न्याय प्रणाली के महत्वपूर्ण घटक के रूप में देखा जाना चाहिए.
सिब्बल ने कहा कि वे अधीनस्थ नहीं हैं. क्योंकि वे न्याय देते हैं. उस स्तर की न्यायपालिका में यह विश्वास पैदा किया जाना चाहिए कि उनके फैसले उनके खिलाफ नहीं होंगे और वे न्याय वितरण प्रणाली की रीढ़ की हड्डी का प्रतिनिधित्व करते हैं. अपने लंबे कानूनी करियर पर विचार करते हुए सिब्बल ने जिला न्यायालय स्तर पर जमानत दिए जाने की कम आवृत्ति पर चिंता व्यक्त की.
उन्होंने कहा कि मेरे करियर में, मैंने शायद ही कभी उस स्तर पर जमानत दी हो. यह सिर्फ मेरा अनुभव नहीं है, बल्कि CJI ने भी ऐसा कहा है. क्योंकि हाई कोर्ट पर बोझ है. आखिरकार, निचली अदालत में जमानत एक अपवाद है. स्वतंत्रता एक संपन्न लोकतंत्र का आधारभूत आधार है और इसे दबाने का कोई भी प्रयास हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता को प्रभावित करता है.
बता दें कि औपनिवेशिक युग की प्रथा पर सीजेआई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट 31 अगस्त और 1 सितंबर से शुरू होने वाले जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक स्मारक डाक टिकट और सिक्के का अनावरण किया. अपने भाषण में भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने जिला न्यायालयों को अधीनस्थ कहने की औपनिवेशिक युग की प्रथा को समाप्त करने का आह्वान किया.
उन्होंने कहा कि कानूनी व्यवस्था की रीढ़ को बनाए रखने के लिए, हमें जिला न्यायपालिका को अधीनस्थ न्यायपालिका कहना बंद करना चाहिए. आजादी के 75 साल बाद, हमारे लिए ब्रिटिश युग के एक और अवशेष - अधीनता की औपनिवेशिक मानसिकता को दफनाने का समय आ गया है. इस दौरान केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा भी मौजदू रहे.