संवाददाता: एम.एस वर्मा, इटावा ब्यूरो चीफ, सोशल मीडिया प्रभारी, 6397329270
मनोज कुमार जसवंतनगर
जसवंतनगर। यहाँ की सुप्रसिद्व मैदानी रामलीला में राम वनवास और दशरथ मरण की लीलाए दर्शायी गई इस दौरान रानी कैकेयी द्वारा राजा दशरथ से जैसे ही अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजपाट और राम को चौदह वर्षों का वनवास मांगा गया,दर्शकों की आँखें छलछला आयीं । पिता की आज्ञा पर राम लक्ष्मण व सीता बन को चले जाते है तो राम बियोग में राजा दशरथ प्राण त्याग देते है। शुक्रवार को यह लीला तालाब किनारे स्थित प्रसिद्व शिव मंदिर पर प्रदर्शित की गई। दासी मंथरा द्वारा रानी कैकेयी को सुझाव दिया गया कि राजा साहब अपनी उम्र को देखते हुये राम को राज-पाट सौपना चाहते है जबकि राजा द्वारा युद्व के समय आपको एक वरदान दिया गया उसे अव मांगने का बख्त आ गया है आप अपने पुत्र भरत के लिये राज पाठ और राम को चौदह वर्ष के लिये बनवास मांग लो मथंरा का सुझाब रानी कैकई को अच्छा लगा और बह कोप भवन में चली गई राजा दशरथ उन्हे बुलाते है और पूछते है
तो रानी उन्हें दिये गये वरदान के बारे में याद दिलाती है और अपने पति राजा दशरथ से वरदान मांगती है कि भरत को राज गददी तथा राम को चौदह वर्ष का वनवास दिया जायें रानी कैकेयी के कहने पर राजा दशरथ प्राण जाये वर वचन न जाई, रघुकुल रीति सदा चलि आई सोचकर राम को बनवास व भरत का राज तिलक की घोषण कर असहाय दशरथ मूर्छित होकर गिर पड़ते है केवट राज गुह के द्वारा राम को नदी पार कराते हुए।
राजपरिवार के शोकाकुल होने के बावजूद राम ने सहर्ष पिता के वचन का पालन कर वनगमन की तैयारी शुरू की तो पत्नी सीता और भ्राता लक्ष्मन भी साथ ही चल दिते है इसपर गुरू वशिष्ठ व सुमंत द्वारा राम को काफी समझाते है
परन्तु राम पिता की आज्ञा मान वनवास के लिए जाने लगते है तीनो ने राजसी वस्त्रों को त्याग वनवासी वस्त्रों को धारण किया। माता कौशल्या से अनुमति ले,वन को प्रस्थान कर दिया। उधर राम के बन गमन वियोग में दशरथ ने प्राण त्याग दिए। इस अवसर पर रामलीला समिति के राजीव गुप्ता उर्फ बबलू , अजेन्द्र गौर, आदि उपस्थित रहे।