संवाददाता: एम.एस वर्मा, इटावा ब्यूरो चीफ, सोशल मीडिया प्रभारी, 6397329270
इटावा/जसवंतनगर
हर साल दशहरे के दिन मेघनाथ और कुंभकरण के साथ रावण का पुतला दहन किया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। बचपन से ही हम सभी ने रावण को बतौर खलनायक,घमंडी राजा और माता सीता के अपहरणकर्ता के तौर पर ही जाना है।
लेकिन क्या आप जानते हैं पौराणिक मान्यताओं में रावण को महापंडित कहा जाता है।
रावण सिर्फ एक खलनायक या घमंडी राजा ही नहीं था बल्कि उसमें ऐसी कई खूबियां भी थी जो उसे अपने समय काल के दूसरे राजाओं से काफी अलग बनाती हैं।हालांकि रावण का घमंड ही उसके पतन का कारण बन गया था।
इस साल नवरात्रि पर चलिए हम आपको रावण के उन विशेषताओं के बारे में बताते हैं जिनकी वजह से वह महापंडित कहलाया और जिन खूबियों की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
1. रावण की शिवभक्ति
अपने समयकाल में रावण से बड़ा कोई शिव भक्त नहीं था। कहा जाता है कि रावण भगवान शिव का इतना बड़ा भक्त था कि वह कैलाश पर्वत समेत उन्हें अपनी लंका में लेकर जाना चाहता था।जब वह कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश करने लगा तब भगवान शिव ने अपने पैरों की छोटी उंगली से कैलाश को दवा दिया,जिससे पर्वत के नीचे रावण का हाथ भी दब गया था। दर्द से कराह रहे रावण ने उसे समय भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना कर डाली थी।
2. कुशल शासक था रावण
राक्षस राज रावण के समय काल में भले ही पूरी दुनिया में उसका आतंक छाया हुआ था, लोग उससे डरते थे,खौफ खाते थे लेकिन रावण अपने लंका वासियों के लिए एक अच्छा व कुशल राजा था।कहा जाता है कि रावण के शासन काल में लंका बासियों को ना तो किसी भी चीज की कमी रहती थी और ना ही सुरक्षा का कोई डर सताता था।उसका राज्य इतना समृद्ध था की लंका के गरीब से गरीब व्यक्ति के पास भी सोने के बर्तन हुआ करते थे
3. महापंडित था रावण
रावण ब्राह्मण परिवार से था हालांकि अपनी असुर प्रवृत्ति की वजह से वह राक्षस कहलाता था रावण भगवान ब्रह्मा का वंशज था।वह भगवान ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति पुल्सत्य के पुत्र ऋषि विश्वा का पुत्र था। इस नाते वह भगवान ब्रह्मा का पर पोता था। रावण को अपने समय में दुनिया का सबसे ज्ञानी व्यक्ति माना जाता था वह वेदों का ज्ञाता होने के साथ-साथ विज्ञान गणित ज्योतिष शास्त्र और राजनीति में निपुण था। वह कई शस्त्रों का मालिक था, जिसे उसने तपोबल से प्राप्त किया था। इसके साथ-साथ रावण आयुर्वेद का भी ज्ञान महा ज्ञानी था।
3. संगीतज्ञ था रावण
रावण संगीत प्रेमी था। वह बीणा बजाने में निपुण भी था।उसने एक बाध यंत्र भी बनाया था जिससे बेला कहा जाता है।मान्यताओं के अनुसार बेला ही वायलिन का मूल और प्रारंभिक स्वरूप है इस वाघ यंत्र से ही वायलिन का जन्म हुआ था।
5. ज्योतिष का था ज्ञात
कहा जाता है कि रावण ज्योतिष शास्त्रों में पारंगत था। मेघनाथ के जन्म के समय उसने अपने तपोवल बाल से सभी ग्रहों को अपना दास बना लिया था और मेघनाथ की कुंडली में ऐसा योग का निर्माण करवाया था जिससे उसे मारना लगभग असंभव हो गया था लेकिन एन मौके पर शनि देव ने अपनी चाल बदल दी और मेघनाथ को अमर नहीं होने दिया।
इस वजह से क्रोधित होकर रावण ने शनिदेव पर आघात किया था और उन्हें आजीवन अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा था।कई जगहों पर आपको ऐसी तस्वीर भी देखने को मिलेगी जिससे मैं रावण के पैरों के नीचे एक व्यक्ति लेटा हुआ नजर आएगा भगवान हनुमान जब सीता माता का पता लगाने अशोक वाटिका पहुंचे थे,तब उन्होंने शनि देव को मुक्त करवाया था।
6. वास्तुशास्त्र का था ज्ञानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण वास्तु शास्त्र का भी बहुत बड़ा ज्ञानी था। इसलिए माता पार्वती के लिए भगवान शिव ने रावण से ही सोने की लंका बनवाने के लिए कहा था। महादेव ने रावण को ही गृह प्रवेश की पूजा करने के लिए पुरोहित बनने का भी आग्रह किया था। लेकिन पूजा समाप्त होने के बाद जब यजमान से दक्षिण प्राप्त करने की बारी आई तो रावण ने भगवान शिव से सोने की लंका ही मांग ली थी।
सिर्फ इतना ही नहीं रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए जब श्री राम ने यज्ञ करने का फैसला लिया था,तब उसे यज्ञ में भी पुरोहित बनने का आमंत्रण श्री राम ने रावण को ही दिया था जिसे उसने स्वीकार भी कर लिया था।
7. रावण जैसी प्रखर बुद्धि और किसी की नहीं
रावण 10 सिरों वाला था इसलिए उसकी बुद्धि भी किसी भी आम आदमी के मुकाबले कहीं ज्यादा मानी जाती थी। कहा जाता है कि रावण एक बार जिस चीज को हासिल करने की ठान लेता था वह उसे किसी भी कीमत पर अपनी बुद्धि और चतुराई के बल से प्राप्त करके ही मानता था।
यही वजह है कि सीता स्वयंवर में अपमानित होकर वापस लौट के कई वर्षों बाद जब सुपण खान के अपमान का बदला लेने के बहाने रावण को माता सीता का अपहरण कर उन्हें प्राप्त करने का मौका मिला तो उसने एक पल भी विलंब ना करते हुए अपने मामा मारिच के साथ मिलकर पूरा षड्यंत्र रच डाला।
8.धैर्य और वीर था लंकेश
रावण को भले ही घमंडी राजा माना जाता हो लेकिन उसकी अपनी वीरता पर घमंड करना व्यर्थ का नहीं था। माता सीता की खोज करने और रावण के बल का पता लगाने के लिए जब हनुमान लंका पहुंचे और रावण से मिलकर जब वह श्री राम के पास वापस लौटे तो वह भी लंका पति रावण की तारीफ किए बिना नहीं रह सके थे।
कहां जाता है कि उसे वक्त भगवान हनुमान ने रावण के चेहरे की तेज,उनके रंग-रूप, सौंदर्य,धैर्य और एक वीर पुरुष होने के सभी लक्षणों की वर्णना की थी।कहा जाता है कि अगर रावण बुराई के मार्ग पर ना चला होता तो वह अपने तपोवन और वीरता की बदौलत देवलोक का स्वामी भी बन सकता था।
9.सभी को समान अधिकार देना चाहता था रावण
कहा जाता है कि रावण सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करना चाहता था। वह देवों के भोग-विलास वाली यक्ष संस्कृति के सख्त खिलाफ था। वह देवों और राक्षसों को समान अधिकार देने का पक्षपाती था और अपनी रक्षा करने वाली रक्ष संस्कृति की स्थापना करना चाहता था दरअसल मूल रूप से रक्ष संस्कृति को मानने वाले ही राक्षस कहलाये।
10. विनम्र था रावण
रावण में भले ही राक्षसी गुण विद्यमान हो लेकिन उसमें विनम्रता भी भरी हुई थी रावण की अपनी लंका पर पूरी पकड़ थी अगर रावण में विनम्रता नहीं होती तो क्या ऐसा संभव था कि राम रावण युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा लक्ष्मण को शक्ति प्राप्त हुई तो बिना रावण की मर्जी से अथवा उसे बिना भनक लगे ही आयुर्वेदाचार्य सुसेन का अपहरण कर भगवान हनुमान श्री राम के शिविर में लक्ष्मण के इलाज के लिए ले जा पाते? कहां जाता है कि रावण को इन बातों की जानकारी थी लेकिन अपनी विनम्रता की वजह से ही उसने इसका कोई विरोध नहीं किया था।
सिर्फ इतना ही नहीं,जब रावण मृत्यु शैया पर था तब श्री राम ने लक्ष्मण को रावण से ज्ञान लेने के लिए भेजा था। उस समय लक्ष्मण, रावण के सिर के पास जाकर खड़े हो रहे थे जिसे देखकर रावण ने उनसे अपना मुंह फेर लिया था। दरअसल,रावण लक्ष्मण को विनम्रता का पाठ पढ़ना चाहते थे। इस बात का एहसास श्री राम ने अपने अनुज को यह कहते हुए करवाया था कि किसी से जब भी कुछ सीखने जाओ तो उसके चरणों में बैठकर विनम्र भाव से सीखना चाहिए घमंड से नहीं।