संवाददाता: गोपाल आंजना उज्जैन 9981912064
मुख्यमंत्री एवं चीफ जस्टिस मध्यप्रदेश ने किया विक्रमादित्य का न्याय वैचारिक समागम का शुभारंभ
सम्राट विक्रमादित्य ने की थी निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
विक्रमादित्य का न्याय त्वरित और पारदर्शी था : मुख्य न्यायाधिपति सुरेश कुमार कैत
भारतीय न्याय व्यावस्था का आरंभ वैदिक काल में हुआ जहाँ सभा और समिति जैसी संस्थाओं के माध्यम से विवादों का निपटारा किया जाता था। सम्राट विक्रमादित्य के समय यह प्रणाली और अधिक सशक्त हुई। हमारे लिए आज भी उनकी न्याय प्रणाली की प्रासंगिकता अत्यंत महत्वपूर्ण है, समय बदल चुका है लेकिन न्याय की अवधारणा वही है जो विक्रमादित्य ने स्थापित की थी। उन्होंने न्यायपूर्ण, निष्पक्ष और समान समाज की स्थापना की थी। यह बात माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विक्रमादित्य का न्याय वैचारिक समागम के शुभारंभ अवसर पर कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, मुख्य न्यायाधिपति माननीय श्री सुरेश कुमार कैत ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य का शासन व्यवस्था प्रधान था, न कि व्यक्ति प्रधान। विक्रमादित्य का शासन तंत्र न्याय, प्रशासनिक दक्षता और सामाजिक समरसता पर आधारित था। विक्रमादित्य का शासन एक संगठित और सुव्यवस्थित प्रणाली पर आधारित था। सम्राट विक्रमादित्य का न्याय त्वरित और पारदर्शी था। उन्हें न्याय और सुशासन का प्रतीक भी माना जाता है तथा आज भी उनके न्याय की मिसाल दी जाती है।
मुख्यमंत्री बोले-विक्रमादित्य का न्यायिक वैभव अमर है
वैचारिक समागम के उद्धाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि उज्जैन की धरा वैभव के साथ ही सम्राट विक्रमादित्य जैसे साहसी वीरों की भी जन्मदायनी है। उज्जैन एक समय तक ज्ञान, विज्ञान, कला, संस्कृति, न्याय, सुशासन, व्यापार, व्यवसाय का एक सर्वमान्य केन्द्र रहा है। सभ्यता और संस्कृति की जन्म भूमि भारत अनादि काल से ही अत्यंत वैभवशाली राष्ट्र है। भारत की उर्वरा भूमि ने पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा, सम्राट अशोक, महाराजा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे अनगिनत वीरों का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय जिस वीर को जाता है, वे है उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य। विक्रमादित्य ने जो अदम्य पराक्रम दिखाया वह किसी के बस की बात नहीं। गणतंत्र की स्थापना का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को है। उन्होंने जो दान दिया वह आज तक किसी ने नहीं दिया। उनका नाम सदैव अमर रहेगा। सम्राट विक्रमादित्य का न्यायिक वैभव इतिहास में अमर है। भारत का इतिहास न्यास के आदर्शों से परिपूर्ण है। हम सभी ने सिंहासन बत्तीसी में बत्तीस पुतलियों के माध्यम से विक्रमादित्य के न्यायिक वैभव को पढ़ा और सुना है। वह संपूर्ण भारतीय जनमानस में आज भी एक प्रेरक कथा के रूप में जीवित है। विक्रमादित्य के शासन में न्यारय केवल एक विधिक प्रक्रिया नहीं था बल्कि यह समाज के सामाजिक और नैतिक दायित्वों को भी ध्यान में रखते हुए एक सशक्त प्रणाली थी, जो समाज को न्याय और सदाचार की दिशा में अग्रसर करती थी।
कुर्सी की शक्ति का उपयोग समाज कल्याण में हो: जस्टिस कैत
कार्यक्रम को सम्बोधित करते मुख्य न्यायाधिपति कैत ने कहा कि अपनी कुर्सी की शक्ति का उपयोग हमेशा समाज कल्याण, समाज हित में करना चाहिए। न्याय केवल दंड देने का माध्यम नहीं बल्कि समाज में नैतिकता और सामाजिक संतुलन बनाने के लिए होना चाहिए। हमारी वर्तमान न्याय प्रणाली प्राचीन न्याय प्रणाली पर ही आधारित है। उन्होंने वर्तमान में न्यायाधीशों की कमी की बात करते हुए कहा कि आज देश में लाखों प्रकरण न्यायालयों में लंबित है, इसका सबसे बड़ा कारण है न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी। अकेले मध्य प्रदेश में लगभग चार लाख चौसठ हजार प्रकरण लंबित है। वर्तमान में 53 न्यायाधीशों की व्यवस्था है लेकिन सिर्फ 34 न्यायाधीश ही प्रकरणों का निराकरण कर रहे है और शेष पद रिक्त है। उन्होंने कहा कि हमने राज्य और केंद्र सरकार को 85 न्यायधीशों की नियुक्ति का प्रस्ताव भेजा है।