जसवन्तनगर में कैला त्रिग़मा देवी मंदिर पर भक्तों और श्रद्धालुओं का तांता लगा
संवाददाता: एम. एस. वर्मा, मनोज कुमार
जसवंतनगर/इटावा: चैत्र नवरात्रि नवमी के दिन सुबह से ही कैला त्रिग़मा देवी मंदिर पर भक्तों और श्रद्धालुओं की पूजा अर्चना के लिए लाइन लगाकर करते नजर आते है। वैसे तो वर्ष भर में कैला मईया मंदिर में कोई न कोई कार्यक्रम होते है रहते है यह मंदिर कस्बा के बीचों बीच स्थापित होने से मंदिर में भक्तों का आना बना रहता है।जसवंतनगर में अहीर टोला मोहल्ला में स्थित “शाला मंदिर” पर भी देवी का थान है जहां लोग पूजा अर्चना करने जाते है। नव विवाहित जोड़े सबसे पहले वही पूजा करके आशीर्वाद लेकर कंगन खोलते है।
वर्तमान में जसवंत नगर कस्बा में लोहा मंडी मोहल्ला में, जो भव्य त्रिगमा देवी मंदिर है, उसका अस्तित्व सन 1973- 74 के बाद ही आया। मंदिर की जगह पर नीम का एक बड़ा पेड़ होता था। उस पेड़ की जड़ के पास जमीन पर कुछ बटिया टाइप पत्थर की मूर्तियां रखी रहती थी, जिनकी पूजा मोहल्ला की महिलाएं जल चढ़ाकर किया करती थीं।सन 1970 में भारतीय जीवन बीमा निगम में विकास अधिकारी के पद पर लाल बिहारी चतुर्वेदी को जसवंतनगर में तैनात किया गया। वह बड़े ही धार्मिक और भक्त टाइप के व्यक्ति थे। बीमा का काम करते थे। एक दिन उनके दिमाग में यह बात आई कि जसवंत नगर के प्राचीन मंदिरों का क्यों न जीर्णोद्धार कराया जाए। उन्होंने एक-एक कर नगर के मंदिरों में यह काम पूरी लगन और निष्ठा से शुरू किया। बिजली, पंखा, लाइट तथा उनका जीर्णोद्धार कराना शुरू किया। एक दिन उन्होंने जब लोहा मंडी मोहल्ला में महिलाओं को नीम के पेड़ के नीचे रखी बटियों की पूजा करते देखा, तो उनके दिमाग में आया कि नीम के पेड़ के नीचे ही क्यों न एक देवी का भव्य स्थान बनवा दिया जाए।
चूंकि यह पेड़ किसी मुस्लिम टेंट व्यवसाई की जगह में था , तो देवी का स्थान बनाने में अड़ंगा आ खड़ा हुआ। चौबे जी ने अपने मन की बात लोगों को बताई, तो कुछ हिंदूवादी स्थान को देवी के स्थान के रूप में विकसित करने पर रजामंद हो गये और हुआ यही एक रात जहां पर देवी की बटिया रखी हुई थी, वहां रातों-रात एक देवी की मूर्ति विराजित कर दी गई, जब यह बात नगर में फैली तो तनाव फैल गया।
बाद में पुलिस और प्रशासन ने पेड़ के नीचे जहां मूर्ति रखी गई थी, उस पर यथा स्थिति बनाए रखने के दोनों समुदायों को निर्देश दिए।
धीरे-धीरे विराजित हुई देवी की महिमा बढ़ती गई और मूर्ति को एक ऊंचा स्थान बनाकर झोपड़ी में विराजित कर दिया गया। एक बौने कद के बाबा वहां निवास करने लगे और उन्होंने देवी पूजा आरंभ करादी इसके साथ ही देवी श्रद्धालुओं का वहां आगमन शुरू हो गया पूजा अर्चना होने लगी।
बाद में देवी स्थान को लेकर मुकदमे बाजी हुई और जसवंत नगर की रईस और पूर्व एमएलसी शांति देवी ने झोपड़ी के सामने की अपनी रियासत की जगह देवी स्थान के लिए दान दे दी। मगर पुजारी के रूप में काम कर रहे बौना बाबा ने उस स्थान पर एक भवन तो बनबा दिया ,मगर देवी जी की मूर्ति उस स्थान पर ही विराजित रही, जहां पेड़ के नीचे विराजित थीं ।
कई वर्षों तक मुकदमे बाजी हुई। फिर मुकदमे बाजी के दौरान दूसरे पक्ष ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अपने हाथ खींच लिए और फिर उस जगह पर देवी मंदिर का बनना आरंभ हो गया।
पेड़ के नीचे रातोंरात विराजित कराई गई देवी प्रतिमा आज भी मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में है । साथ ही अनेक मूर्तियां भी मंदिर में विराजित हो गई है। इस वजह से देवी भक्तों का यहां आना-जाना रोजाना ही रहता है । नगर के बहुत से दुकानदार रोजाना देवी के दर्शन करके ही अपने प्रतिष्ठान खोलते हैं ।महिलाएं सुबह और शाम बड़ी संख्या में देवी की आरती के वक्त मौजूद रहती है। मंदिर में अक्सर कार्यक्रम चलते रहते हैं।
मंदिर के संस्थापक पुजारी बौना बाबा के निधन के बाद मोहल्ले के ही एक किशोर श्रद्धालु लाला भैया ने मंदिर की व्यवस्था संभाली और उन्होंने भी मंदिर को भव्य बनवाने में बड़ा योगदान किया। कई वर्षों तक मंदिर की सेवा के बाद लाला भैया का पुजारी के रूप में स्वर्गवास हो गया।
अब मंदिर में शंकर बारात समिति और कुछ युवा व्यवस्था संभालते हैं। नव रात्रियों में रोजाना मेले का माहौल रहता है ।सुबह शाम होने वाली आरती में भारी भीड़ जुटती है । झंडा घंटे चढ़ते हैं तथा विशाल भंडारा का भी आयोजन होता है।
नियमित रूप से जाने वाले मंदिर के एक भक्त आत्म कश्यप ने बताया है कि केला त्रिगमादेवी का मंदिर इतना सिद्ध मंदिर है कि यहां हर एक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं दर्शन करने वालों के दुख दूर हो जाते हैं।
नगर की बहुत सी महिलाएं वर्ष भर केला त्रिगमा देवी के दर्शन करके ही अपनी दिन चर्या शुरू करती है। शंकर बारात समिति के पदाधिकारी गण मनोज गुप्ता और राजीव गुप्ता ने बताया है कि मंदिर की भव्यता बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं रखी जाएगी । सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त की जा रही