*माओवाद पर प्रहार, लाल आतंक का बस्तर के इतिहास का रक्तिम का अंतिम लड़ाई, माओवाद की दिख रही है विदाई!*
*रिपोर्टर -उत्तम बनिक पखांजूर छत्तीसगढ़*
कई दशक से बस्तर के शांत वातावरण में लाल आतंक का देवश झेल् रही, बस्तर हरी भरी वादियों मे निर्दोष निहते का खून से रंगने वाले मा ओवादी के साथ आखिरी लड़ाई लड़ने वाले हमारे वीर, पराक्रम जवान 44 डिग्री के गर्मी पर 5000 फीट की ऊंचाई पहाड़ी पर हजारों की संख्या में माओवादी से लोहा ले रहे है
सुदूर बस्तर से यह तस्वीर साफ दिखाई दे रही है माओवादी आतंक के शरण क्षेत्र बस्तर के तेलंगाना सीमावर्ती इलाक़े से। यहां हज़ारों जवानों ने उस पहाड़ को घेर रखा है जिसमें नक्सलियों के आलाकमान होने के संकेत हैं।
ऐसा पहली बार दिखाई दे कहा है जब कहीं मुठभेड़ चल रहा हो तब नक्सलियों की ओर से साफ़तौर पर शांति वार्ता को लेकर पर्चा जारी किया जा रहा है इतने दशक के बाद पहली बार सुनने को मिल रहा है, पांच नक्सलवादी को मार गिरा चुके हैं टॉप लीडरों की फसें होने की अंदेशा है
करीब 80 घंटे से ज़्यादा समय बीत चुका है जब पहाड़ी को घेरे जवान धीरे-धीरे चढ़ाई करते जा रहे हैं। यह माओवादियों के संगठन के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन है। इसका नाम मीडिया के हिस्से में ऑपरेशन गरुड़ दिया गया है।
इस पहाड़ पर सफलता का मतलब बस्तर के रक्तिम इतिहास का अंतिम दिन साबित हो सकता है। यदि जैसा कि अनुमान है कि इस पहाड़ पर हिडमा, दामोदर जैसे टॉप लीडर मौजूद हैं जिनके नाम पर बस्तर का पूरा रक्तिम इतिहास जुड़ा है। हिडमा के गांव पर काफी पहले ही सरकार का क़ब्ज़ा हो चुका है। सुकमा इलाक़े का एक गाँव बड़े सट्टी गृहमंत्री अमित शाह के आवाहन के बाद नक्सल मुक्त घोषित हो चुका है। इस लिहाज़ से कर्रेगुटा की पहाड़ी पर माओवादी संगठन के खिलाफ अंतिम लड़ाई साबित हो सकती है।
नक्सली संगठन की ओर से शांति वार्ता के इस प्रस्ताव पर संभव है कि सरकार पहाड़ पर शरण पाने वाले नक्सलियों से हथियार छोड़कर समर्पण के लिए कह सकती है यदि ऐसा हुआ तो बस्तर के इतिहास में माओवादियों का नाम पूरी तरह से मिट सकता है…